इंसान हूँ मैं।
- Abir Maheshwari
- Jun 6, 2019
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Updated: Jun 6, 2019

बचपन में दिए गए जो संस्कार,
बताएंगे बड़ा होके
कैसा बनेगा वो इंसान।
ना हिन्दू बनना चाहता हूँ
ना मुसलमान,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना योग्यता है मुझमें समझने की
अल्लाह और भगवान,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना चाहा था सीखू उर्दू
ना सीखना चाहा था हिंदी को,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना ग़रीब रहना है मुझे
ना बनना चाहूँ अमीर,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना आम दरबारी हूँ मैं
ना बनना चाहूँ किसी का ख़ास,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना इस पल का हूँ मैं
ना लम्हें का मोहताज़,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना ही था कभी वास्ता फकीरी से
ना हूँ मैं महाराज,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना नफ़रत की वज़ह
ना प्यार का भूका हूँ मैं,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना औरत का सहूँ मैं अपमान
ना मर्द को कहना चाहूँ हैवान,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान ।
ना मंदिर मांगा मैंने
ना मस्ज़िद की गिरानी चाही पहचान,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना कभी मुझे खरीदना था पानी
ना कभी मैं खरीदना चाहूँ मेरी साँस,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना कल से वासता था मेरा
ना आनेवाले कल का पता है मुझे,
मैं आज में जीना चाहूँ
इंसान का बच्चा हूँ
बस बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना किसान समझो मुझे
ना समझो मुझे यवा,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
ना कभी हिंसा की कामना की मैंने
मैं तो बस ले चला शान्ति का पैग़ाम,
इंसान का बच्चा हूँ
बनना चाहूँ मैं इंसान।
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