वह शक्स! (Poetry)
- Rohit Kadam
- Jun 13, 2019
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वो क़ासिद भी सुना सा लगता है अब,
शायद वह शक्स मुझे अभी याद नहीं करता।
ये माजी वक्त तो
किताबों के पन्नों पर ही अच्छा लगता हैं,
शायद उससे भी फितूर ना हो जाए
वो शक्स मुझे अभी याद नहीं करता।
तुम्हारे नर्गिस की अदा देखकर
शायरी बना लेते थे हम,
शायद वो खो गई हैं जाने कहा
क्योंकि वो शक्स मुझे अभी याद नहीं करता।
रिफाकत निभाना शायद हमारे बस नहीं
वो मुख्तसर वक्त भी घड़ी हो नहीं सकी,
हमारा क्ल्ब तो हमेशा मयस्सर ही हैं
पर वह शक्स मुझे अभी याद नहीं करता।
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