फख्र। (Poetry)
- Rohit Kadam
- Jun 21, 2019
- 1 min read
मैं जरूर आऊंगा एक दिन आंधी की तरह,
फख़्र तो होगा ना तुम्हें मुझ पे?
जब तुम फरियाद लेकर आओगे
तो फरिश्ता सा बनकर हाज़िर हो जाऊंगा,
तब से हर बार याद आऊंगा मैं तुम्हें
पर, तुम्हें फख़्र तो हैं ना मुझ पे?
लोगों की गुफ्तगू होगी
पर अच्छी होंगी मेरे बारे में,
बस एक ही गुज़ारिश थी तुमसे
तुम्हें फख़्र तो हैं ना मुझ पे?
जब हम फ़ना हो जाएंगे इस जहान से
तब पता चल जाएगी हमारी अहमियत,
एहसास होगा, पर मैं नहीं
तब फख़्र तो होगा ना तुम्हें मुझ पे?
जब मैं इस दुनिया में नहीं रहूंगा
तभी इन हसीन यादों से मांग लेना बयान,
बस इस बेहिस-ओ-बद-हवास मन में
रह जाएगा एक सवाल,
तुम्हे फख़्र तो हैं ना मुझपे?

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